कोरोना संकट के चलते मजदूर कैसे बना मजबुर ? How did the laborer become helpless due to Corona crisis?

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      प्रिय पाठक आप सभी जानते है, के पिछले साल दबे पांव चीन से आये कोरोना वायरस ने पुरे भारतवर्ष में आतंक मचा दिया था|

    मार्च 2020 में भारतवर्ष में प्रवेश कर लाखो मनुष्य जीवन को बाधा पहोंचाते हुवे कोरोना वायरस ने हजारों लोगो को मौत के घाट उतार  दिया था| कोरोना वायरस के बढते आतंक को रोकने के लिये केंद्र  सरकार द्वारा संपुर्ण देश में तालाबंदी याने LOCKDOWN लगाया गया था|

    लॉकडाऊन से पहले भारत सरकार ने जनता कर्फ्यु का एलान किया था| लेकीन फ़िर अपना सख्त रुख करते हुवे सरकार ने पुरे भारतवर्ष में  संपुर्ण लॉकडाऊन लगाया था|

    कोरोना वायरस के बढते आतंक को रोकना है, तो लॉकडाऊन  लगाना ही पढेगा ऐसा भारत सरकार कि ओर से दो टुक कहा गया था| क्योंकी कि बाजारे, कॉलेज, स्कुल, गार्डन,शादी-समारोह,सामाजिक कार्यक्रम, हॉटेल और मॉल में लोगो के इकठ्ठा होने से COVID-19 का कोहराम बढने कि संभावना बहोत थी|

लॉकडाऊन के चलते कारखानो पर भी ताला

    देखते ही देखते भारतवर्ष में कडे लॉकडाऊन के तहत संपुर्ण तालाबंदी हुवी थी| बाजारे, हॉटेल, मॉल, गिर्जा घर, मस्जिद-मंदिर और सिनेमा घरों के साथ साथ कंपनी और कारखानों में भी पुरी तरह से ताला लगाया गया था| इसका कम-ज्यादा असर समाज के हर घटक के जीवनशैली पर हुवा था| लोगों कि जीवन शैली पर सबसे ज्यादा असर सामुहिक तौर पर आर्थिक मामले में हुवा था| कारखाना मालीकों का कच्चा माल, तैय्यार किया हुआ माल नही बिकने के कारण वैसे हि पडा रहा| इन दोनो कारण कि वजह से छोटे कारखान दारों कि आर्थीक स्थिती कमजोर हो चुकी थी| मध्यम कारखान दारो को भी काफी हद्द तक आर्थिक नुकसान सहेना पडा था|

मध्यम वर्गीय लोग अपना दर्द ना कहे सके ना सहे सके !

     मध्यम वर्गीय लोग ना तो अपनी जीवन शैली के अनुसार और आर्थिक बजेट के हिसाब से उंचे पायेदान पर जाकर आराम कि जिंदगी बसर सकते, ना ही निचले पायेदान पर आ कर ज्यों के त्यों जीवन गुजार सकते| इसीलिये जब भी आर्थिक मामला आता है, तो उसका सिधा और गहेरा असर मध्यम वर्गीय समुदाये पर हि होता है|

    मध्यम वर्गीय समुदाये ना तो अपना दर्द बांट सकता है, ना हि छुपा सकता है| मध्यम वर्गीय लोगों का दर्द ना उंचे पायेदान वाले लोग समझ सकते है, ना हि निचले पायेदान वाले लोग समझ सकते है| इस के कारण  मध्यम वर्गीय लोगों का दर्द बहुत त्रास देने वाला हो जाता है|

   कोरोना वायरस संक्रमण के बढते खतरे को रोकने के लिये लगाये गये संपूर्ण तालाबंदी से मध्यम वर्गीय समुदाय काफी हद्द तक प्रभावित रहा था|जो अभी पिछले लॉकडाउन कि मार के कारन संभलने कि कोशीश कर रहा था| के, कोरोना वायरस ने फ़िर एक बार दसतक दी |

कोरोना ने फिर मचाया आतंक !

    कोरोना वायरस के दुसरी लाट से संक्रमित मरीजों कि संख्या सेकडो से निकल कर हजारों कि संख्या में पहोंच चुकि है| और कोरोना वायरस से संक्रमित मरने वाले लोगों कि संख्या भी आंखे घुमाने वाली होने लगी है| तभी से राज्य और देश में फिर से लॉकडाऊन लग सकता है, ऐसी आशंकाए जताये जा रही थी| क्यों की कोरोना संक्रमण के बढते खतरे को रोकना है, तो मास्क लगाना, सैनिटायजर का प्रयोग और सामाजिक दुरी से काम नही चलेगा, यह देश और दुनिया कि आम जनता भी जान चुकी है|

     प्यारे पाठकों आप सभी बेहतर और ब खुभी जानते है, के पिछले तीन-चार साप्ताह से कोरोना वायरस पुरे भारत देश में अकराल-विक्राल रूप याने डरावना रूप धारण कर चुका है| कोरोना संक्रमण से बाधित मरीजो कि संख्या देखते हि देखते लाखों कि संख्या में पहोंच चुकी है|तो दुसरी तरफ कोरोना संक्रमण से मरने वाले मरीजो कि संख्या भी हर 24 घंटो मे बढते हि जा रही है| यह आंकडे अपने आप में आंखे रुला देने वाली है|

 मजदुर फिर बना मजबुर !

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     प्रिय पाठकों हमने देखा के आर्थिक तौर पर कुछ भी नीच-उच होता है, तो इसका सीधा और गहरा असर देश के मजदूर घटक के जीवन शैली पर बहोत होता है| क्यों की मजदूर के पास ना तो माया-पुंजी होती है,और ना हि गुजर-बसर का सामान! क्योंकी मजदूर को अपनी हड्डी-चमडी घस कर हि दमडी लाना होती है| तब जा कर मजदूर के घर का चुल्हा जलता है| यह कडवी लेकीन सही बात है, जो अपने आप में किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को सोचने पर मजबुर करती है|

     पिछले साल हमने देखा के लॉकडाऊन 2020 का असर सर्व वर्गीय लोगों पर तो हुआ हि था| लेकीन मजदूर समुदाय पर गहरे तौर पर हुआ था| भारतवर्ष कि आर्थिक राजधानी मुंबई में देशभर से विभीन्न राज्यों से अपने गांव-कसबे से निकलकर मजदूर लोग अपना पेट भरने के लिये आते है| इन बेसहारा मजदुरों के पास अपने शरीर पे लगे मासं और हड्डी के सिवा घसने के लिये कोई और साधन नही होता| अगर इन गरीब बेसहारा मजदूर के पास  कोई और अच्छा विकल्प होता, तो क्या यह मजदूर अपना चहिता और प्यारा गावं छोडने पर मजबुर होते? यह सद्सद विवेक बुद्धी भी मानती है |

     अब भी कोरोना संक्रमण के खतरे को देखकर देश के विभिन्न राज्यों के विभीन्न जीलो में लॉकडाऊन जैसे हालात है| कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा देखते हुवे लग-भग सभी राज्यों ने अपने अधिकारो का उपयोग करते हुवे, कहीं पर मिनी लॉकडाऊन तो कहीं पर नाईट कर्फयु और कहीं पर संपूर्ण लॉकडाऊन लगाया है|

महाराष्ट्र में फिर लगा कडक लॉकडाऊन

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     बढते कोरोना संक्रमण के खतरे को रोकने के लिये महाराष्ट्र सरकार ने पुरे राज्य में कडक लॉकडाऊन लगाया है| ऐसे में मजदूर समुदाय जो कारखानो में काम करते है, या निर्मान का काम करते है| उन मजदुरो के पास ना तो खाने का सामान बचा है, ना तो मायापुंजी! ऐसे में आ अब लौट चले यह कहते हुवे मजदूर अपने-अपने गावं जाने के लिये निकल पढे है| क्योंकी कारखाना मालीक  बिना काम के मजदूरों के पालन पोषण के खर्च का भार नही उठा सकते, इसीलिये देश कि आर्थिक राजधानी मुंबई से आए दिन हजारो के संख्या में मजदूर समुदाय रेल्वे से अपने-अपने गावं के ओर जाने के लिये मजबुर हो गये है| यह नजारा छत्रपती शिवाजी टर्मिनल्स और लोक मान्य टिळक रेल्वे स्टेशन पर मजदुर और उनके परिवार के गावं जाने कि बे चैनी से हि पता चलता है|

    पिछले साल लॉकडाऊन 2020 में मजदूर समुदाय के पालन पोषण के लिये कोई विकल्प नही बचा था| | इसीलिये मजदूर लाखों कि संख्या में तडपती धुप में पैदल हि चल पढे थे| क्योंके अब मजदुरो के सामने घर वापसी के लिये वाहनों कि संख्या मजदुरों कि संख्या से कहीं गुना कम थी, इसलिये नंगे पाव पैदल हि चल पढे थे| अनेक मजदुरो कि विभीन्न हद्सो में मरने कि दर्दनाक और दिल दहलाने वाली वारदाते भी घटी थी| यह घाव अभी ताजा हि था, के महाराष्ट्र में लॉकडाऊन लगने के कारण मजदूर अपने गावं जाने के लिये सर पर संसार का बोज लिये मजबुर हो गये है|

रास्ता भी तू है, मंजिल भी तू है | ना घर है ना ठिकाना !

    मजदूर फिर मजबुर है | वही गावं और वही फसाना !

     यह गाना गाते हुवे देश का मजदूर अपने गावं कसबे को निकट रहा है|


लेखक/संपादक: जर्नलिस्ट मुजीब जमीनदार 

 

 

 

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