रमज़ान महीने में रोज़ा क्यों और कैसे रखते है| Why and how do you fast in Ramadan month?
प्रिय पाठकों आप सभी को
रमज़ान महीने की हार्दिक शुभकामनाएं।
मुस्लिम समुदाय में रमज़ान महीने को बहुत
बड़ा महत्व है। यह महीना अनेक कारणों से अपने आप में महान है। रमज़ान महीने को
अन्य महीनों का सरदार भी कहा जाता है। इस महीने में मुस्लिम समुदाय रोज़े रखतें
हैं।रोज़ा रखने को इस महीने में अनन्य साधारण महत्व है।
रमज़ान महीने में रोज़ा रखने के साथ-साथ
इस महीने की ख़ास इबादत नमाज़े तराविह है।
पाठकों से मेरा अनुरोध है कि
वह मेरा यह ब्लॉग शुरू से अंत तक ज़रूर पढ़ें। थोड़ा भी स्क्रोल ना करें। यह ब्लॉग
बहुत अच्छा और जानकारी से भरपूर होने वाला है। तो गाइस चलों शुरू करते हैं, रमज़ान महीने से जुड़ी हर पहलू
पर नज़र डालते हैं।
रमजान महीने के स्वागत के लिये जन्नत को ग्यारह महीने पहले से हि सजाया जाता
है| जन्नत याने स्वर्ग को चारो ओर से मुश्क कि
धुई दी जाती है| रोजेदार के रोजे, नमाज
और तिलावत में कोई खलल याने कोई रुकावट ना हो, इसलिये शैतान
को आग कि जन्जीरों में जकड कर समंदर में फेक दिया जाता है| रमजान
महीने कि खास इबादतो में सबसे पहले नंबर आता है, रोजे का|
रोजा
और रोजे कि फजीलत
रमजान महीने में रोजा रखने को बहोत फ़जीलत याने महत्व है| रमजान महीने में रोजा रखना बहोत पुण्यकर्म माना जाता है|
रोजा रखने के लिये सबसे पहले रमजान के आगमन का चांद दिखाई देना बहोत
जरुरी होता है| जिसे हम चांद रात कहते है, याने चंद्रदर्शन| रमजान महीने के आगमन के चांद का
दीदार याने चंद्रदर्शन करने को भी बहोत भाग्य का माना जाता है| रमजान महीने का चांद देख कर कुछ् दुआ भी पढी जाती है|
चांद का दीदार करते हि याने चंद्रदर्शन करते हि सभी मुस्लीम भाई बहेने एक
दुसरे को ख़ुशी से गले लगाते है| सलाम
करते है और रमजान मुबारक कहते है| खास कर घर के उम्र से छोटे
लोग बडे बुजुर्गो से अदब व नम्रता पुर्वक सलाम कर के उनसे दुआंए लेते है| यह समय यकीनं बहोत ख़ुशी और हर्ष से भरा होता है|
रमजान महीने के आगमन पर सबसे बडी खुशिया मासुम बच्चो में दिखाई देती है| आसमान में चांद दिखाई देते हि छोटे बच्चे आपस में एक दुसरे को
अदब से सलाम करते है| प्यार व मोहोब्बत से एक दुसरे को गले
लगाते है| ख़ुशी से शोर मचाने लगते है, याने
खुशियो से झुमने लगते है|
मौसम के हिसाब से याने आसमान में अगर बादल हो, तो देश और दुनिया में चांद दिखाई देने कि अधिकृत पुष्टी कि
जाती है| चांद दिखाई देने कि पुष्टी करने के लिये देश और देश
के अलग-अलग राज्यों में एक कमेटी होती है| यह कमेटी देश के
विविध राज्यों के प्रतीनिधियो के संपर्क में रहेती है| एक
व्यक्ती से ज्यादा याने तीन लोगो के हां भरने पर हि चांद दिखाई देने कि पुष्टी कि जाती है|
हमारे भारतवर्ष में रमजान का चांद दिखाई देने कि उत्सुकता हमारे हम वतन भाईयों
में भी बडे शिद्दत से दिखाई देती है| हमारे हम वतन भाई चांद दिखाई देने पर मुस्लीम भाईयों को गले मिलकर रमजान
के आगमन कि बधाई दिल कि गहेराइयों से देते है| जो व्यक्ती
मील कर रमजान के आगमन कि मुबारक बाद नहीं दे सका, वो मोबाईल
के माध्यम से जरूर मुबारक बाद देता है| यह हमारे भारत वर्ष
कि गौरवशाली परंपरा पुरी दुनिया के लिये भाई चारगी कि जिंदा मीसाल है|
रमजान
में नमाज-ए-तरावीह का महत्व
चांद दिखाई देने पर या चांद दिखने कि आधिकारिक पुष्टी होने के बाद रमजान महीने
कि विशेष इबादत याने नमाज-ए-तरावीह होती है| यह
तरावीह कि नमाज दिन के आखरी नमाज याने इशा कि फर्ज नमाज और दो रकाअत सुन्नते
मौक्कीदा और दो रकाअत नफील नमाज के बाद और तीन रकाअत वीत्र से पहेले सामुहिक रूप
से अदा कि जाती है| नमाजे तरावीह कि बिस रकाअत नमाज होती है|
जो सुन्नते मौक्कीदा होती है| नमाजे तरावीह में
कुरआन-ए-पाक कि तिलावत होती है| यह कुरआन-ए-पाक कि तिलावत
याने कुरआन पठन नमाज पढाने वाले इमाम करते है| इस
कुरआन-ए-पाक कि तिलावत को, इमाम के पीछे खडे सभी नमाजी नमाज
कि हालत में बडे अदब व एह्तेराम से सुनते है| जिस तरह
कुरआन-ए-पाक पढने का याने कुरआन-ए-पाक पठन का सवाब याने पुण्य है, ठिक उसी तरह इमाम के पीछे खडे होकर नमाज कि हालत में बडे अदब से
कुरआन-ए-पाक सुनने का भी सावाब याने पुण्य है|
कोरोना
महामारी के चलते नमाजे घर में हि पढने का दुख:
कोरोना महामारी के चलते नमाज-ए-तरावीह अब अपने-अपने घरो में हि अदा कि जा रही
है| पिछले वर्ष भी कोरोना महामारी के बढते संकट
को देख कर सरकार द्वारा कडक लॉकडाउन लगाया गया था| जिसके
कारन नमाज-ए-तरावीह मुस्लीम समुदाये ने अपने-अपने घरो में हि परिवार के अन्य
सदस्यो के साथ अदा कि थी| और अब इस वर्ष भी कोरोना महामारी
के चलते, कोरोना संक्रमण के बढते खतरे को देख कर सरकार के
द्वारा देश के विविध राज्यो में फ़िर से लॉकडाऊन लगाया गया| इसलिये
नमाज-ए-तरावीह पिछले वर्ष कि तरह अपने-अपने घरो में हि अदा कि जा रही है| नमाज-ए-तरावीह सामुहिक तौर से मस्जिद में नही अदा करने का दुख, मलाल और अफसोस मुस्लीम समुदाये के चेहरे पर साफ-साफ दिखाई दे रहा है|
हमने कभी सपने में भी नही सोचा था, के कभी
नमाज-ए-तरावीह मस्जीदो में नही बल्की अपने-अपने घरो में हि अदा करनी पढेगी,
यह कहते हुए अनेक मुस्लीम बुजुर्ग और युवावों के आंखो से आसू बहते
देख कर मेरी भी आंखे नम हो गई|
रमजान
में कुरआन-ए-पाक कि तिलावत
रमजान महिना और कुरआन शरीफ कि तिलावत इन दोनो का बहुत गहेरा तआलुक है| रमजान महीने में फर्ज रोजे के साथ-साथ अगर कोई बडी अफजल इबादत
है, तो वो है कुरआन-ए-पाक कि तिलावत| कुरआन-ए-पाक
पढने को रमजान महीने में बहुत महत्व प्राप्त है| क्यों कि
कुरआन शरीफ रमजान महीने में हि नाजील किया गया याने जमीन पर उतारा गया| कुरआन शरीफ यह आसमानी पवित्र किताब है, जो जमीन पर
तमाम इंसानियत के हिदायत के लिये उतारा गया है| रमजान महीने
में हर इबादत का सवाब कई गुणः बढ जाता है| कुरआन-ए-पाक कि
तिलावत कि बरकत और रहमत ऐसी है याने महिमा ऐसी है के, जो भी
इन्सान इस कुरआन-ए-पाक को इमान कि हालत में तिलावत करेगा याने कुरआन-ए-पाक पढेगा|
उस शख्स के लिये कुरआन-ए-पाक कल कयामत के दिन हुज्जत करेगा और
कुरआन-ए-पाक पढने वाले शक्स कि अल्लाह पाक से बक्शिश करायेगा| जो भी शख्स कुरआन-ए-पाक कि तिलावत सुनेगा अल्लाह पाक उस शख्स याने उस
व्यक्ती को जरूर हिदायत से नवाजेगा| याने सही राहे रास्त पर
लायेगा यह अल्लाह का वादा है| और अल्लाह का वादा कभी झुटा
नही हो सकता|
रमजान महीने में कुरआन शरीफ कि तिलावत करना बहोत अफजल तरिन इबादत है| लेहाजा पुरे रमजान शरीफ में एक कुरआन-ए-पाक पढ कर खत्म करना
कुरआन शरीफ का हक़ अदा करने का सवाब याने पुण्य है| इसी कारण
रमजान महीने में कुरआन-ए-पाक कि तिलावत करने कि कसरत कि जाती है|
मुस्लीम महिलायें भी रोजे रख कर, घर
के सारे कामो को अंजाम दे कर अपने-अपने घरो पर हि बडे अदब व एह्तेराम से
कुरआन-ए-पाक कि तिलावत करती रहती है| याने पुरा रमजान महिना
इबादत, तिलावत और अल्लाह के जिक्र से पूर-नूर हो जाता है|
रमजान
में जकात दे कर गरीबों कि मदत करना
हर वो कलमा पढने वाला इन्सान जो कमाई करता है| अल्लाह पाक ने उन सभी लोगों पर अपने-अपने माल कि पाकीजगी और
जान व माल कि हिफाजत के लिये जकात फर्ज कि है| जकात वो है,
जो अपने पाक कमाई में से 2.5 प्रतिशत रक्कम गरीब लोगों के लिये
निकाली जाये| यह इसलिये के समाज के गरीब लोग भी अपना
गुजर-बसर अच्छे से कर सके| लेकीन कुछ लोग इन बातों का ध्यान
नही रखते| उन्हे लगता है के माल कि जकात अदा करने से हमारे
माल में कमी होगी| लेकीन उन्हे यह पता नही के अपने माल कि
जकात निकाल कर गरीबों में बाटने से अल्लाह पाक उनके माल व दौलत में बरकत आता
फरमाता है| क्योंकि यह अल्लाह पाक का वादा है, और हमे यकीन होना चाहिए के अल्लाह का वादा कभी झुटा नही हो सकता| जकात कि मात्र रक्कम एक लाख पर 2.5 प्रतिशत याने कुल 2500/-{दो हजार पांच सौ रुपये} होती है| साल के अंत में अपने पुरे माल का हिसाब किया जाये, जैसा
के नगदी रुपये, गहेने, प्लॉट इन सभी का
कुल हिसाब किया जाना चाहिए| और कुल जमा रक्कम में से 2.5
प्रतिशत रक्कम जकात निकाल कर जरुरत मंद गरिब रिश्तेदार, गरीब
पडोसी और बेवा याने विधवा औरते और बेकस, बेबस, बेसहारा और मजबुर लोगो तक पहोचाना चाहिए| अल्लाह पाक
ने कुरआन शरीफ में साफ बतलाया है, के अपने माल कि जकात देने
वालों के माल का बिमा अल्लाह पाक खुद निकालता है| याने जकात
निकालने वाले लोगों के माल कि हिफाजत अल्लाह पाक
खुद करता है| कुरआन शरीफ में अल्लाह
पाक ने वाजेह तौर पर फरमाया है, याने कहा है के जो कौम अपने
माल कि जकात पुरी अदा नही करती, अल्लाह पाक उस कौम पर बारीश
को रोक देता है| रहेमत वाली, बरकत वाली
बारीश नही बरसाता| याने बारीश सहीं समय पर नही बरसना,
या तो बारीश बहोत ज्यादा होना या फ़िर बारीश से जान और माल का नुकसान
होता है|
जकात निकालने का सही और उचित समय रमजान महीने में हि होता है| क्यों की रमजान महीने में जकात देने का सवाब याने पुण्य कहिं
गुनः बढ जाता है|
रमजान
महीने में हर रोजेदार कि दुआ क़ुबुल होती है
रमजान महीने में सभी कलमा पढने वाले व्यक्ती पर याने जो बालिग हुवा है, हर उस शख्स पर अल्लाह पाक ने रमजान के रोजे फर्ज कर दिये है|
जो भी रोजेदार बंदा सुबह सहर से लेकर इफ्तार तक याने रोजा खोलने तक
अल्लाह पाक कि रजा के लिये याने अल्लाह पाक का हुक़्म पुरा करता है और अपने सभी
जरुरी कामों को आगे-पीछे कर के रोजा रखता है| अल्लाह पाक उस
रोजेदार शक्स को खास इनाम से नवाजता है| पहेले तो रोजेदार कि
दुआ को अल्लाह पाक क़ुबुल फरमाता है और रोजेदार के चेहरे पर नुर झलक्ता है| रोजेदार कि दुआ अल्लाह पाक क़ुबुल फरमाता है| रोजेदार
जो भी दुआ मांगता है, अगरचे वह आखिरत के याने मरने के बाद कि
जिंदगी के लिये दुआ मांगता है, तो अल्लाह पाक उसकी दुआ जरूर
कुबूल करता है| अगर रोजेदार दुनिया के मामले में दुआ मांगता
है तो अल्लाह पाक अपनी मसलीयत को सामने रखते हुवे याने बंदे के लिये जो बेहतर है
वही दुआ कुबूल करता है| जो दुआ बंदे के हक में याने हित में
बेहतर नही, वह दुआ के बदले अल्लाह पाक उसकी कोई और दुआ कुबूल
करता है| जो उसने मांगी भी ना हो, लेकीन
उसके लिये बेहतर याने फायदेमंद हो|
उदा. अगरचे एक छोटा बच्चा अपने मॉं-बाप से
लाल-लाल दिखाई देने वाली आग मांगता है| जिद
करने लगता है, कि उसके नन्हे हाथो में अंगार का गोला दे|
उस मासुम बच्चे को सिर्फ अंगार कि लालई मोहारती है| इसीलिये वह बच्चा रोता और बिलगता रहता है|
लेकीन बच्चे के मॉं-बाप बच्चे कि इस मांग को दर-कीनार कर के और नजरअंदाज कर के
उसके हाथो में अंगार नही पकडवाते, क्योंकी
लाल-लाल दिखाई देने वाली अंगार सिर्फ उपर से हि अच्छी दिखाई देती है| लेकीन उसकी तासीर याने गुनधर्म से बच्चा बे खबर होता है| लेकीन बच्चे के जिम्मेदार मॉं-बाप अंगार के गुनधर्म याने अंगार के नुकसान
से होने वाले अंजाम को जानते है| इसीलिये वह बच्चे कि इस
नुकसान देने वाली मांग को ठुकराते है| और कुछ अच्छी चीज देकर
बच्चे का दिल बहेलाने कि कोशीश करते है|
ठिक उसी तरह बंदा जो दुआ मांगता है अगरचे वह बंदे के हक में याने हित में
अल्लाह के नजदीक अच्छी नही तो अल्लाह पाक बंदे कि उस दुआ को पुरी नही करते याने
कुबूल नही करते| अल्लाह पाक हमेशा हि
बंदे के हक में बेहतर और उचित फैसला करने वाला है|
लेखक/संपादक: जर्नलिस्ट मुजीब जमीनदार
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