रमजान में सहर और इफ्तार कैसे करते है How to do Suhoor and Iftar in Ramadan

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     प्रिय पाठक मेरा हमेशा प्रयास रहेता है, के आप सभी पाठको कों परोसने के लिये कुछ नया दिया जाये| ताके आप के मनोरंजन के साथ-साथ आपको हर विषय में घर बैठे महत्वपूर्ण जानकारी भी मील सके| जो पाठक हर विषय में जानकारी हासील करने के लिये रुची रखते है, उन सभी पाठको को मैं आज रमजान महिना और रोजा इस विषय के साथ-साथ रमजान में रोजा रखने के लिये किये जाने वाले सहर और रोजा समापन याने इफ्तार कि बारिकी से जानकारी देने का प्रयास कर रहा हुं, उम्मीद है के आपको मेरा यह ब्लॉग आप सभी पाठकों को बहोत पसंद आयेगा|

रमजान में सहर का खाना  

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     रमजान में सहर उसे कहा जाता है| जो रोजा रखने के लिये सुबह तडके तीन बजे से लेकर सहर के आखरी समय याने सुबह 3:00 बजे से लेकर सुबह 4:40 बजे तक होता है| यह समय देश के विभीन्न राज्यो के शहर के हिसाब से 5 से 10 मिनट आगे पीछे होता है|

     उस समय खाना खाना सुन्नत है और सुन्नत वह है, जिसे मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम ने किया हो, याने उनके तरीखे पे चलने को सुन्नत तरीका कहते है| सहर में खाना खाने का फायदा यह है, के दिन भर का रोजा रखने में कोई दिक्कत नही होती| याने शरीर कमजोर नही पढता| इबादत, कुरान-ए-पाक कि तिलावत और नमाज पढने के लिये शरीर में ताकत रहती है|

      सहर के खाने में मास का सेवन टाला जाता है| सहर के खाने पर गेहुं कि चपाती या गेहुं के पराठे का सेवन किया जाता है| भाजी-सब्जी, दाल का तडका इन का उपयोग किया जाता है| और इसी के साथ आम, दूध, दही, पेंडखजूर, केले, अंगुर, काजु, बादाम, किशमिश और अन्य फलो का भी सेवन किया जाता है| फलो का सेवन इसीलिये किया जाता है, के उससे दिन भर कोई ज्यादा थकान महसूस नही होती| सहर के खाने में काजु, बादाम, तरबूज कि चीरोन्जी, दुध, शक्कर और उबले हुवे सेवंय्या या फिर असली देसी घी में फ्राय किये हुवे सेवंय्या के मिश्रण से बनाई हुई खीर या शिरखुर्मा के सेवन का भी सेवन किया जाता है| याने रमजान का रोजा रखने के लिये सहर खाने का मजा कुछ और हि है|

      कहीं-कहीं जगह तो सहर के समय मुस्लीम पडोसी अपने घर पर बनाया हुआ तैय्यार खाना भी एक दुसरे के घर पर भेजते है| याने रमजान में रोजा रखने के लिये किये जाने वाले सहर के समय में बहोत उत्साहवर्धक होता है|

रमजान में इफ्तार का महत्व

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    प्रिय पाठकों आप ने अभी-अभी पढा के रमजान में रोजा रखने के लिये सहर क्यों किया जाता है, सहर का क्या महत्व है| आप सभी पाठकों को मैं रमजान के छोटे-छोटे पहेलुओं को बारिकी से इसीलिये बता रहा हुं, के हमारे पाठक यह सब जान सके के रमजान महीने में आखिर मुसलीम समुदाय के घरों में क्या-क्या लगभग होता है| ब्लॉग पढने वाले पाठक कि रुची उस समय और बढ जाती है, के उसके सामने अधिक से अधिक  जानकारी मीलने लगे| मुझे उम्मीद है, के जो पाठक हर विषय कि जानकारी हासील करने में रुची रखते है, वह पाठक मेरे प्रयास कि प्रशांव्सा जरूर करेंगे|

    तो पाठको मैं आप के सामने रमजान के महीने में इफ्तार का महत्व इस विषय में जानकारी दे रहा हुं| रमजान में रोजा रखने के लिये सहर किया जाता है और इफ्तार कि बात ना हो, तो बात हि क्या?

      रमजान में रोजा समापन याने दिन भर के रोजा रखने के बाद शाम में दिन ढलते हि, खाये जाने वाले खाने के समय को इफ्तार कहते है| उमुमन इफ्तार के समय ताजें फलो का सेवन किया जाता है| याने रोजा इफ्तार में तरबूज, खरबूज, पपई, आम जैसे रसिले फलो का सेवन ज्यादा किया जाता है| रोजा इफ्तार में पेंड खजुर का सेवन करना सुन्नत-ए-रसूल है| रोजा इफ्तार पाकिजा कमाई याने हलाल कि कमाई से किया जाता है| हराम कि कमाई से ना तो सहर जायेज है, ना ही इफ्तार| मौसम के हिसाब से 14 से 15 घंटे के बाद रोजा इफ्तार किया जाता है| इसीलिये रोजेदार का पुरा ध्यान खाने पर कम और थंडे चीजो पर ज्यादा होता है| खास तौर पर थंडा पाणी| पाणी किसी भी रोजेदार को अमृत के प्याले से कम नही होता|

     रोजा रखने से अल्लाह पाक कि नियामते याने अल्लाह पाक कि चीज़ो कि अहमियत व महत्व का पता लग जाता है|

      तो यह है रमजान महीने कि फजीलते| और रोजे का महत्व रमजान महीने कि विविध विधी, मैने आप पाठको के साथ रमजान महीने कि बारकाई सरल भाषा में समझाने का बहोत दिल कि कशिश के साथ प्रयास किया है|

     रमजान महिना और रोजा इस विषय पर लिखने के लिये मेरे पाठको ने मुझे ईमेल भेजकर इच्छा प्रकट कि थी| मैने इस ब्लॉग के माध्यम से सीधे और सरल भाषा शैली में समझाने कि कोशीश कि|

     मुझे यकीन है, के आपको मेरा यह ब्लॉग बहोत पसंद आया होगा| तो हमे कमेंट सेक्शन में जाकर जरूर बताये| मुझे आपके कमेंट का इंतेजार है| इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर किजीये आपका हमारे इस साईट पे पधारना हि मेरा जोश और उत्साह अधिक बढाता है|

रमजान में रोजा के आदाब और शर्ते

       रोजा सिर्फ भुका प्यासा रहेने से हि नही हो जाता बल्की रोजा के आदाब और शर्ते भी करने होते है|

      अगर रोजा रखकर अन्य गुनाह भी करते हो, तो आपका रोजा कुबूल नही होगा| याने आपका भुका प्यासा रहना अल्लाह पाक कि नजर में कोई मायेने नही रखता| लेहाजा रोजा रखे तो गुनाह से भी परहेज करे|

      रोजा भुक प्यास बर्दाश्त करने के साथ साथ रोजा रखने वाले कि निय्य्त का भी रोजा होता है| आंखो से बुरी चीज और बुरी जगह न देखे यह आंखो का रोजा होता है| अपने मुह से किसी को बुरा भला ना कहे गाली गलोज ना करे और किसी के पिट पिछे गीबत या चुगली ना करना यह मुह का रोजा है| अपने कानो से बुरा ना सुने यह कानो का रोजा है| अपने हाथ पैर से कोई जुर्म या बुरा काम ना करे गुनाह ना करे| यह हाथ और पैर का रोजा है|

रमजान में सब्र और संयम का महत्व

      पहले तो हम रोजा रखकर किसी के साथ झगडा ना करे, किसी को भी अपनी जबान से गाली-गलोज ना करे| रमजान में रोजेदार अगर रोजे के उसुल और आदाब को दरकीनार कर के गीबत याने एक दुसरे के पीठ पीछे चुगली करता है, तो रोजे के बरकात जाते रहेते है| रोजा रखने वाले रोजेदार से अगर कोई भी व्यक्ती झगडा मारता है, तो रोजा रखने वाले रोजेंदार को चाहिए के वो अल्लाह के वास्ते सब्र करे याने संयम रखे|

      कुरआन-ए-पाक और हदीस शरीफ में इस बात का सीधे और साफ अल्फाज में जिक्र किया गया है, के रमजान का महिना नेकी कमाने का याने पुण्यकर्म और सब्र का है| और सब्र याने संयम का बदला जन्नत है|  

लेखक/संपादक: जर्नलिस्ट मुजीब जमीनदार 


    

 

      

Comments

  1. बहोत अच्छा लगा ये लेख पढ़ कर

    👌🏻👌🏻👌🏻

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  2. हमें सराहने के लिए धन्यवाद, शुक्रिया

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  3. हमें सराहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

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