ज्वार कि खेती कैसे करे How to cultivate jowar
Posted by: MUJIB JAMINDAR
प्रतीकात्मक चित्र |
ज्वार कि खेती कैसे करे ?
प्रिय किसान भाई आप सभी भली-भांती जानते है, के
फसल उगाने के साल में दो महत्वपूर्ण हंगाम होते है| और खास बात तो यह है, के दोनो
ही हंगाम मौसम पर निर्भर है| मौसम अगर अनुकुल और सकारात्मक हो, तो दोनो ही हंगाम याने खरीप
और रब्बी हंगाम में फसले अच्छे उत्पादन देते है| अगर फसल दानेदार भी हो ,तो किसान
को अच्छे अनाज उत्पादन के साथ पशुओं के लिये चारा-घांस भी बडी मात्रा में उपलब्ध हो
जाता है| अगर किसान खुद पशुपालक ना भी हो, तो पशुओ के लिये चारा बेचकर
आय बडा सकता है|
ज्वारी संपूर्ण भारत
वर्ष में लिये जाने वाली फसल
ज्वार
यह अनाज साधारण संपूर्ण भारतवर्ष में लिये जाने वाली फसल मानी जाती है| भारतवर्ष
के करीब सभी राज्य में ज्वार कि खेती किये जाती है| राज्य के हिसाब से ज्वार के किस्म
अलग-अलग हो सकते है| लेकीन बुवाई का तरीका
आमतौर पर समान हि रहता है| ज्वार कि फसल साल के दोनोही हंगामो में कि जाती है|
याने खरीप और रब्बी, इन दोनो हंगाम में ज्वार के बीज कि बुवाइ किये जाती है| और यह फसल किसान को नगदी रुपये
देनेवाली फसल मानी जाती है| जीससे किसान को दोनो हि माध्यम से मुनाफा होता
है| याने अनाज और चारा–घांस से|
ज्वार कि फसल पशुओं के
लिये बेहतर चारा-घांस
|
ज्वारी
कि बुवाई के बाद जब ज्वार कि कटाई हो जाती है, तो किसान को ज्वार कि किस्म, मौसम
और उपर वाले कि दया से उत्पादन होता है| ज्वारी के कटाई के बाद किसान अपने घरेलु
उपयोग से लेकर अनाज बेचकर आय बढाता है| याने दोनो ही माध्यम से किसान ज्वारी का
लाभ ले सकता है| बाद में चारा-घांस के माध्यम से किसान के पास ढेर सारा चारा उपलब्ध
होता है| जीससे किसान अपने पशुओं के लिये चारे का उपयोग कर सकता है| सुखे चारे का
उपयोग कुट्टी मशिन से कुट्टी बनाकर पशुओं के लिये उपयोग कर सकता है| अगर किसान
पशुपालक ना भी हो, तो सुखा चारा किसान मंडी में लेजाकर या फिर किसान मंडी के बाहेर
हि नगदी रकम लेकर पशुओं के लिये पशुपालको को बेचकर अधिक मुनाफा कमा सकता हा|
पशुपालको
में पशुओं के चारो को लेकर हमेशा से हि होड लगी रहती है, के पशुओं के चारे का
प्रबंध कैसे करे? इसीलिये सुखा चारा हातो-हात बिक जाता है, जीससे किसान फायदे में
रहता है|
वैसे
तो भारी संख्या में किसान पशुओं के लिये मका के साथ-साथ ज्वारी कि भी हरे चारे के
निर्माण के लिये बुवाई करते है| हरा चारा पशुओं के लिये बहोत उपयोगी होता है| खास
कर दुधारू पशुओं के लिये, कच्चे चारे से दुधारू पशुओ में दूध कि मात्रा बढ जाती
है| जिसके कारन किसान अधिक मुनाफा कमा सकता है|
ज्वार के लिये खेत जमीन
कैसी हो?
ज्वार
कि खेती के लिये साधारण तौर पर सभी किस्म कि जमीन में ज्वार कि बुवाई कि जाती है|
जमीन के प्रत के अनुसार उत्पादन होता है| और ज्वार उत्पादन के साथ हरा चारा और
सुखा चारा पशुओं के लिये उपलब्ध होता है|
ढालु जमीन, भारी जमीन और मध्यम जमीन ज्वारी के खेती के लिये अछुत नही है| सभी खेत
जमीन में ज्वारी कि बुवाई कर सकते है|
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ज्वार के लिये अनुकूल समय और मौसम कैसा हो?
हमने
पहले हि कहा है, के ज्वारी साल के दोनोही हंगाम याने खरीप और रब्बी हंगाम में
बुवाई करके उत्पादन और चारा ले सकते है, लेकीन खरीप हंगाम में ज्वारी कि बुवाई का
सही समय अक्टूबर, नवंबर महिना है| अक्टूबर महीने में ज्वारी कि बुवाई करना बहोत
उचित होता है, क्योंकी ज्वारी कि उगाई के लिये यह मौसम में हमेशा कि तुलना में
आद्रता ज्यादा होती है| और अगर जमीन में नमी हो ,तो उगाई बेहतर होती है| और अगर
उगाई अच्छी हो,तो फिर उत्पादन भी अधिक होने कि संभावना बढ जाती है|
बुवाई के लिये ज्वार कि कुछ किस्में
अच्छी
पैदावार हो और अधिक उत्पादन के लिये ज्वार कि कुछ किस्म आप को बताता हुं| फुले
यशोदा, फुले रेवती, फुले सुचित्रा, एस पी वि 2048, एस पी वि 1515, सी एस वि 18, सी
एस वि 22 आर, सी एस वि 27 आर, महामंडल, दगडी ज्वार, परभणी कृषी विद्यापीठ ने
विकसित किया हुवा परभणी मोती और परभणी ज्योती आदी ज्वार के किस्म बुवाई के अच्छी
पैदावार और अधिक उत्पादन के लिये बेहतर मानी जाती है|
ज्वारी कि बुवाई कैसे करे?
ज्वारी
कि बुवाई करने से पहले जिस खेत जमीन में, ज्वार के बीज कि हम बुवाई करना चाहते है|
उस जमीन को औत-हल चला कर या अन्य जुगाड
वाले यंत्र से जमीन में औत मारे| फिर जमीन में रह रहे खरपतवार कुडा, कचरा, पत्थर
जमीन से बाहर निकाल कर फेंक दे| और खेत जमीन को, ज्वारी कि बुवाई के लिये हमवार
याने तय्यार रखे|
जमीन तय्यार होते हि खेत जमीन में तिफन से (ज्वारी बुवाई यंत्र) से ज्वारी
कि बुवाई करे| ज्वारी कि पैदावार अच्छी हो इसीलिये बुवाई से पहले, अगर जमीन में
पाणी कि उपलब्धता हो तो, ही खाद का उपयोग करे| इस कारन ज्वारी कि उगाई अच्छी होती
है| और पैदावार भी अच्छी होती है|
सुनिश्चित दुरी और
बेहतर अंतराल हो
ज्वारी
कि उगाई अच्छी हो, और उत्पादन भी अधिक हो याने पैदावर अच्छी हो| इसलिये ज्वारी कि
बुवाई के समय दो लाईन्स याने लकीर के बीच सुनिश्चित दुरी हो और बेहतर अंतराल हो| इसका
खयाल रखना बहोत जरुरी है| सुनिश्चित दुरी के कारण फसल में दिमक और अल्ली या अन्य
कीट का प्रकोप होने कि संभावना कम हो जाती है| याने उपचार करने से बेहतर है के रोग
हि ना हो|
खरपतवार व्यवस्थापन सही करले
ज्वारी के बुवाई के बाद साधारण रुप से तिस दिन में किसी खेत जमीन में
खरपतवार अधिक होती है| तो खरपतवार को नष्ट करने के लिये, निराई और गुडाई अच्छे से
करले| हां किसान भाई, खरपतवार नष्ट करने
के उद्देश से किसी भी हर्बिसाईड का उपयोग ना करे| नही तो, हर्बिसाईड के उपयोग के
कारन ज्वारी के पैदावार में बुरा असर पड सकता है |
बेहतर कीट नाशक का छिडकाव
ज्वारी
के बुवाई के साधारण तिन_चार दिनो के भीतर हि ज्वारी से बाहर अंकुर निकलने लगता है|
बुवाई के बाद तीस से चालीस दिनों में उचित कीट नाशक का छिडकाव करना हि बेहतर होगा|
कीट नाशक के छिडकाव के बाद अल्ली या दिमक जैसा कीड का प्रकोप नही दिखाई देता है|
खाद का खुराक कैसा देना है ?
ज्वारी
के बुवाई बाद सर्व सामान्य रुप से तिस से चालीस दिन के भितर खाद का खुराक योग्य
मात्रा में दे सकते है| खाद का खुराक सही समय पर देने से ज्वार कि पैदावर अधिक से होती
है| हां किसान भाई ,अगर आपके खेत जमीन में पाणी कि उपलब्धता नही है, तो कोई भी खाद
का खुराक ना दे| ऐसा करने से फसल पर अनुचित असर पड सकता है, याने फसल को नुकसान
पहोच सकता है|
खाद
का खुराक सही समय पर देने से ज्वारी कि तने मजबूत होती है| जडे जमीन में गेहराई तक
पहोच जाते है| और फिर फल-स्वरूप ज्वारी कि हाईट याने उंचाई भी अधिक होती है| और
सीटटा-भुटटा भी दानेदार होकर बडा होता है| याने पैदावार अच्छे से होकर उत्पादन भी
अधिक होता है|
ज्वारी
कि तने मजबूत होने से जडे गेहराई तक जमीन में धसे रहने से खराब मौसम के कारन याने
मौसम में बदलाव से हवा के मार को भी बर्दाश्त कर लेता है| साधारण जडे वाली ज्वारी
अगर हवा के मार से जमीन पर गिर जाती है तो उत्पादन का नुकसान होने कि दुर्घटना हो
सकती है| और फिर जमीन पर गिरी ज्वारी कि फसल महेज पशु चारा हि बना रहेगा| याने
किसान को एक हंगाम का भारी नुकसान होने कि संभावनाए अधिक होती है|
कच्चा दाना-पोट्रा
खरीप
ज्वारी के साधारन साडे तीन से चार महिनो में सुट्टा अच्छा सा निकल आता है| और दाने
भरना याने सूटटो में ज्वारी के पैदावार प्रथम-द्वितीय चरण में होती है| अगर पाणी
कि उपलब्धता हो, तो इस समय पाणी का एक खुराक देने से ज्वारी के सूटटो में ज्वारी
कि पैदावार अच्छे से होकर सूटटा अधिक दानेदार होने लगता है|
हुलडा
|
ज्वारी
कि बुवाई साधारण चार से साडेचार महिनो में ज्वारी हुल्डे में होती है| याने पोट्रे
में आने के 15-20 दिन में हुल्डा तय्यार हो जाता है| याने ज्वारी कि पैदावार पूर्ण
हो कर दाना पुरी तरह से भर जाता है|
पक्षियो के प्रताप का
प्रबंध करना बेहद जरुरी
बुवाई
से लेकर हुल्डे में आने का सफर याने प्रवास करने के बाद से फसल कटाई तक का समय
बहोत जोखीम भरा होता है| दानेदार सुटटो और बुट्टो को चिडीया, तोता, मैना, कौआ और
दिगर पक्षियो के प्रताप का धोका बहुत होता है| पक्षी दाना कम खाते है, लेकीन ज्यादा
तर दाने जमीन पर गिरा देते है| जिस कारण नुकसान ज्यादा होता है| और किसान कि आये
कम हो सकती है|
पशुओं के हमले से बचाव
करे
|
ज्वारी
के उगाई के बाद से लेकर फसल कि कटाई तक गाय, भेंस ,सुअर ,हिरण और भी पालतू जानवर, जंगली
जानवर इन सभी का खतरा बना रहेता है|याने किसान भाई पाल्तु और जंगली जानवारो का
हमला रोकने में यदि असफल हो जाता है|तो समझो के किसान मुह फाड कर याने आआआ करके आसमान कि तरफ देखता
हि रह जायेगा|मतलब पुरी एक फसल का नुकसान हो गया समझलो|
इतना
सब व्यवस्थापन करने के बाद भी, मौसम कि अवकृपा के कारण यदी फसल का नुकसान किसान
भाई को सहेना पडे| तो यह हमारी याने किसान भाई कि असफलता नही बल्की कम नसिबी हो
सकती है!
लेकीन
किस्मत तो किसान के हातो के लकिरो में नही बल्की किसान के बाजुवो में होती है| इसलिये
किसान घबराता नही, चलता रहेता है|
चल
किसान-चल किसान |तु हल चलाता चला जा |
तु गीत ख़ुशी के गाये जा |कदम-कदम बढाए जा |
मिट्टी के
ढेले तुने फोडे है |किस्मत कि चादर तेरे चरणो में है |
चल किसान–चल
किसान |तू हल चलाता चला जा |
खरीप फसल के लिये
सभी किसानो को मेरी कोटी–कोटी शुभकामनाए |
तो प्रिय पाठक मै हुं किसान
जर्नलिस्ट मुजीब जमीनदार ,और आप पढ रहे है समाचार-मीडिया.com पर| उम्मीद करता हुं के आप
सभी को मेरा यह लेख बहोत पसंद आया होगा |आपका हमारी साईट पर पाधारना हि हमारा
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हमारा Email: mujibjamindar2014@gmail.com
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जय जवान || जय किसान ||
लेखक/संपादक: जर्नलिस्ट
मुजीब जमीनदार
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