कोरोना काल में बच्चो कि कैसी रही अदाकारी Performance of the children during the Corona period

 

कोरोना-काल-में-बच्चो -कि-कैसी-रही-अदाकारी
प्रतीकात्मक चित्र

      प्रिय पाठक आप सभी जानते है, के भारतवर्ष में प्रवेश करे कोरोना वायरस को पुरे सात-आठ महीने गुजर चुके है| कोरोना वायरस ने प्रवेश करने के बाद सेही पुरे देश और दुनिया में डर और खौफ का माहोल बना हुवा है| और डर खौफ भी क्युं नही रहेगा |  

      जब देश में आए दिन कोरोना से संक्रमित मरीजो का आंकडा बढता गया| कोरोना वायरस कोविड-19 से मरने वाले मरीजो कि संख्या शुरू में एक से लेकर अब हजारो में पहोच गयी है|

लॉकडाऊन कि जिंदगी 


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      कोरोना आक्राल-विक्राल चेहरा ना बनाये, इसलिये सरकार ने लॉकडाऊन लागाने का कठोर निर्णय लिया | और लॉकडाऊन का असर पुरे देश पर गहराता चला गया| यहां तक के देशभर में आवाजाही पुरी तरह से ठप हो चुकी थी| कारखाने बंद हो चुके थे, सरकारी और निम्न सरकारी ऑफिसेस भी सुनी सुनी पडी थी | बाजारहाट बंद हो चुके थे एक तरफ जमीन पर पैदल चलने वालों पर पाबंदी आ चुकी थी तो दुसरी ओर  आसमान पर हवाई जहाजो कि उडाने भी रद्द हो चुकी थी | श्रमिको को बिना काम के हि आए दिन जिंदगी गुजारना पढा | स्कुल-कॉलेज भी बंद पड चुके थे, जो आज और अभी भी बंद है|

       युं कहे तो ज्यादा नही होगा के हमारे चलने, फिरने, काम, कारोबार, शादी-ब्याह सब कुछ घडी के काटो जैसा ठहेरसा गया था| बुजुर्ग लोगों को आयु और कमजोरी कि वजह से घर से बाहर जा नही सकते थे| औरतो याने महिला वर्ग भी घरो में हि कैद हो गये थे|घर से  बाहर काम करने वाले पुरुष वर्ग भी सहेमा-सहेमा अपने घरो में हि रहेता गया| याने हमारा पुरा सिस्टम हि फ़ेल हो चुका था, और फ़ेल चल रहा है ? ऐसे डरे-सहमे माहोल में बडा किरदार रहा वह बच्चों का| मासुम बच्चो के इस अहेम और सफल किरदार को हम कतई भी नजरंदाज नही कर सकते|

        कोरोना काल में बच्चो का अहेम किरदार 

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        नन्हे बच्चें उन्हे कहते है, जो बच्चें कुदरती तौर पर दुनिया से बिलकुल भी बेखबर, जिन्हे दुनिया से कोई परवा भी नही, ऐसे बच्चे हमेशा से हि खेल कुद में रहते है| इतना ही नही, बल्की खेलना और कुदना, मौज करना हि बच्चों कि निजी जिंदगी होती है| खास कर घरो से बहार ग्रुप में गट बना कर ! बिना ग्रुप के बच्चों का कोई भी खेल नही होता| शहरो में खेलने के लिये मैदान होते है, दिल बहलाने के लिये गार्डन,बाग, बगीचे और चमन होते है| और ग्रामीण भारत में घर के आंगन, गली, कुची या मुहल्लो में खाली जगह पर बच्चे खेलने के लिये बिना परमिशन और बिना कागजात के अपना कब्जा जमा लेते है|  तो सारा माहोल हंसी खेल कुद का होता है| अब शहर के गार्डन, बाग, बगीचे, चमन सुने-सुने है, तो ग्रामीण भारत के घर के आंगन, गली, कुची, मुहल्ले के खेलने कि जगह बिलकुल सुनी पडी है| क्योंके खेलने वाले बच्चे हि घरो में कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिये अपनेही घरो में कही महिनो से नजरकैद है| जिस वजह से सारा भारत सुना-सुना नजर आ रहा था,और नजर आ रहा है |

     यह सब प्रक्रिया में अहेम और उचित किरदार रहा उन मासुम बच्चों का जो असल जिंदगी में अपनी जिद्द और ख्वाहिशे छोडकर अपनेही घर में बडो का कहेना मानकर खमोशिसे बैठे रहे | मासुम बच्चों इस अहेम अदाकारी कि हम तहे दिल से सराहना करते है |और करना भी चाहिए |जो बच्चे आसमान के तारे तोडकर लाने के लिये अपने माता पिता पर जिद्द करते थे ,वह बच्चे अपनी जिद्द छोडकर लॉकडाऊन का पालन करते नजर आये |यह अपने आप में एक अजूबा हि तो है |

           हम हमारी और आपकी अपनी साईट समाचार-मिडिया कि ओर से  भारत देश और दुनिया के सभी बच्चो को सलाम और प्रणाम करते है |

                                        लेखक/संपादक: जर्नलिस्ट मुजीब जमीनदार

 

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